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देवि देहिनो बलं धैर्य वीर्य संबलं ( संस्कृत गीत )

देवि देहिनो बलं धैर्य वीर्य संबलं (अखिल भारतीय संस्कृत गीत सत्र 2018-19)Vidyabharti, Alumni, Saraswatishishumandir, shishumandir, blogger, songs, geet

देवि देहिनो बलं

धैर्य वीर्य संबलं

राष्ट्र मान वर्धनाय

पुण्य कर्म कौशलं ।। देवि देहि।।


चण्ड मुण्ड नाशिनी, ब्रह्म शांति वर्षिणी

तेजोसाते जात नाश, आसु दु:ख यामिनिं

भातु धर्म भास्करं, सत्य शौर्य भास्वरं

आर्य शक्ति पुष्टमस्तु, भारतम् निर्गलम् ।। देवि देहि।।


साधुवृन्द पालिके, विश्व धात्रि कालिके

दैत्य दर्प ताप शाप, कालिके करालिके

रक्ष आर्य संस्कृतिं, वर्धयार्य संहतिं

वेदमंत्रपुष्टमस्तु, भारतम् समुत्तुलम् ।। देवि देहि।।


भावार्थ - इस कविता में कवि भारतमाता को शक्ति का रूप मानकर प्रार्थना करता है । दुर्गा माँ के रूप में, कालिका रूप में भारत वर्ष को सदैव उन्नति को प्राप्त होने की प्रार्थना की है।




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