ज्योति जला निज प्राण की, बाती गढ़ बलिदान की
ज्योति जला निज प्राण की, बाती गढ़ बलिदान की,
आओ हम सब चलें उतारें, माँ की पावन आरती।
चले उतारें आरती ।। ध्रु. ।।
यह वसुन्धरा माँ जिसकी गोद में हमने जन्म लिया,
खाकर जिसका अन्न-अमृत सम, निर्मल शीतल नीर पिया।
श्वासें भरीं समीर में, जिसका रक्त शरीर में,
आज उसी की व्याकुल होकर, ममती हमें पुकारती ।। 1 ।।
चले उतारें आरती......।।
जिसका मणिमय मुकुट सजाती, स्वर्णमयी कंचन जंघा,
जिसके वक्षस्थल पर बहती, पावनतम यमुना-गंगा।
संध्या रचे महावयी, गाए गीत विभावरी,
अरूण करों से उषा सलोनी, जिसकी माँग संवारती ।। 2 ।।
चले उतारें आरती......।।
देखो इस धरा जननी पर, संकट के घन छाये हैं,
घनीभूत होकर सीमाओं पर, फिर से घिर आये हैं।
शपथ तुम्हें अनुराग की, लुटते हुए सुहाग की।
पल भर की देरी न तनिक हो, माता खड़ी निहारती ।। 3 ।।
चले उतारें आरती......।।
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