जिन मन, क्रम, वचनों में गुरुभक्ति मचलती है
गुरुभक्ति
जिन मन, क्रम, वचनों में गुरुभक्ति मचलती है ।
उनके जीवन में तो मस्ती-ही-मस्ती है ।।1।।
दिल में सदभावों के संकल्प उभरते हैं
कर्मों में सेवा के नित सपने पलते हैं
जो नजरें जगती में बस प्रेम निरखती हैं ।
उनके जीवन में तो मस्ती-ही-मस्ती है ।।2।।
जलते जिनके मन में संवेदन के दीपक
जग तम हरने तत्पर रहते अंतिम क्षण तक
परहित के पथ जिनने कायम की हस्ती है।
उनके जीवन में तो मस्ती-ही-मस्ती है ।।3।।
धन की, पद की जद में आ जाता है इनसान
माया ठगिनी बनकर हर लेती पूरा ज्ञान
संतुष्टि भाव स्तर गति जिनकी पहुँचती है।
उनके जीवन में तो मस्ती-ही-मस्ती है ।।4।।
भौतिकता न केवल संकट उपजाए हैं
यह त्याग किया जिसने, सब वैभव पाए हैं
इस आत्मसाधना पथ मति जिनकी चलती है।
उनके जीवन में तो मस्ती-ही-मस्ती है ।।5।।
अवसर आया अब फिर हम हो सतर्क जाएँ
अब मनोयोग श्रम से जगहित कुछ कर पाएँ
युग रचना में जिनकी यह साँस खरचती है ।
उनके जीवन में तो मस्ती-ही-मस्ती है ।।6।।
जिन मन, क्रम, वचनों में गुरुभक्ति मचलती है ।
उनके जीवन में तो मस्ती-ही-मस्ती है ।।
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