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गाथा वीर शिवाजी की-बुत शिकन

 बीजापुर अशांत था । दिन का चैन और रात की नींद गायब हो गई थी । शिवाजी के संबंध में प्रतिदिन कोई न कोई समाचार आता और आदिलशाही के दिल पर हथौड़ा सा जा जमता । क्या करें, उससे कैसे निपटें जैसे प्रश्न मुंह बाए खड़े रहते परंतु कोई उपाय समझ में न आता ।


सुल्तान अली आदिलशाह की मां बड़ी साहिबा बहुत तेज-तर्रार और क्रूर हृदय वाली औरत थी । बीजापुर का प्रशासन उसी के संरक्षण में चल रहा था । क्या मजाल कोई चिड़िया भी उसकी इच्छा के विपरीत अपने पर फड़फड़ा जाए । बल्लोलखाँ की वफादारी में उसे किसी प्रकार संदेह हो गया, तो फौरन उसका सिर धड़ से अलग करा दिया । स्त्रियोचित ममता और दया तो उसे छू भी नहीं गई थी ।


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मुगलों और बीजापुर वालों की खटपट तो रहती थी ही । प्रायः मुठभेड़ हो जाती थी । ऐसी ही एक मुठभेड़ तब हुई जब औरंगजेब दक्षिण का सूबेदार था । बीजापुर की ओर से खान मोहम्मद सिपहसालार था । उसने औरंगजेब को अपने जाल में फंसा भी लिया था परंतु वह किसी तरह निकल भागा । बस अब क्या था बड़ी साहिबा गुस्से से आग बरसाने लगी । भरे दरबार में खान मोहम्मद के टुकड़े-टुकड़े करा दिए और किसी के भी मुंह से उफ् तक नहीं निकली ।


आज वही बड़ी साहिबा महल की छत पर बैचेन चक्कर काटती है, बड़बड़ाती है और गुस्से से दांत कटकटा कर रह जाती है । शिवाजी ने उसकी नाक में दम कर रखा है । उसकी हिम्मत जरूरत से ज्यादा बढ़ गई है और यहां कोई हिम्मत ही नहीं करता कि उस से दो-दो हाथ कर ले ।


शिवाजी ने निपटने के उपाय सोचने के लिए सदा की तरह उस दिन भी बीजापुर दरबार लगा था । ज्योंही अली आदिलशाह ने दरबार में प्रवेश किया, सारा दरबार खड़ा हो गया । सरदारों ने भली-भांति अपना स्थान ग्रहण भी नहीं किया था कि तभी पर्दानशीन बड़ी साहिबा पधारी और सुल्तान के सिंहासन के निकट ही बनी शानदार झरोखेदार गद्दी पर विराजमान हो गई । दरबारियों को अपनी आंखों पर यकीन ना हुआ । हड़बड़ा कर खड़े हुए और दम घुटने के खड़े के खड़े रह गए, सब की सिट्टी गुम हो गई ।


सुल्तान ने बात शुरू की -  "फिर वही मसला हमारे सामने है इस शिवाजी के बच्चे से कैसे निपटे ? हमने उसके बाप शाहजी को खत लिखा था उसका जवाब आ गया है और उससे भी हमारा कोई काम नहीं चलता है । शाहजी ने लिखा है कि उसका बेटा उससे बागी हो गया है उसकी कोई इज्जत नहीं करता और ना ही उसका कहना मानता है । शाहजी ने उस बागी से निपटने की हमें पूरी छूट दे दी है अब सवाल फिर वही है कि क्या करें ?"


एक के बाद एक सरदार सुझाव देने खड़ा होता रहा । गरमा गरम भाषण हुए और ना जाने यह क्रम कब तक चलता कि अचानक बिजली कौंधी ।


हां, बड़ी साहिबा गरज उठी- "बस, बस, ये बकवास बंद करो । बहुत हो चुका तुम सब कागजी शेर बन दरबार में दहाड़ते हो और मतलब की एक बात नहीं करते । सीधे-सीधे यह बताओ तुम में से कौन है जो शिवाजी के बच्चे को पकड़ कर यहां दरबार में पेश कर सकता है । जिस में हिम्मत हो वह आये आगे और......


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इसी बीच एक दासी सोने का एक सजा थाल जिसमें चांदी का वर्क लगा पान का बीड़ा रखा था चौकी पर रख कर चली गई ।


जैसे सब को लकवा मार गया हो । एक दूसरे की तरफ देखने लगे फिर नीचे गर्दन कर खड़े रहे । बड़ी साहिबा ने एक तरफ से नजर घुमाई और सबको घूरती चली गई बीजापुर दरबार के सभी शेर तो वहां मुंह लटकाए खड़े थे- अफजल खाँ, मूसेखाँ, हसन पठान, हिलाल, घोरपड़े, घाटगे, मम्बाजी भोसले आदि सब मौजूद थे ।


बड़ी साहिबा नागिन सी फुफकार उठी- "तुम सब हिजड़े इकट्ठे हो गए हो । कोई भी मर्द यहां बाकी नहीं है क्यों खड़े हो यहां-" "मैं खुद को इस काम के लिए पेश करता हूँ बड़ी साहिबा ।"


सारे दरबार की नजर उधर को मुड़ गई जिधर से आवाज आई थी । अफजल खान अन्य सरदारों की पंक्ति से निकल कर दो कदम आगे आ पहुंचा और पान का बीड़ा उठाकर उसने चवा लिया ।


अपना हाथ ऊंचा उठाकर उसने बड़े घमंड से घोषणा की- "बड़ी साहिबा मैं उस चूहे को जिंदा पकड़ कर आपके सामने पेश करने की कसम खाता हूं ।"


अली आदिलशाह के चेहरे पर खुशी दौड़ गई परंतु बड़ी साहिबा पहले की तरह ही गंभीर होकर बोली हम तुम्हारी बहादुरी के कायल है खान लेकिन शिवाजी बड़ा मक्कार है । उससे निपटने के लिए फौजी ताकत के साथ साथ चालाकी के दांवपेच भी लगाने पड़ेंगे । 


"बड़ी साहिबा, मैं कोई आटे का नहीं बना हूं सैकड़ों लड़ाइयां मेरी हिम्मत की जिंदा मिसाले हैं आप बेफिक्र रहें और उस दिन की बाट देखें जब मैं उसका काफिर का हाथ पैरों में बेड़ियां डाल कर इस दरबार के सामने पेश करूंगा ।"


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हमें तुम्हारी बातों पर पूरा-पूरा यकीन है आखिर जब तुम उसके बाप को मुश्क लगाकर दरबार में ला सकते हो तो उसके बेटे की नाक में भी नकेल डाल सकते हो । हम खुदा से तुम्हारी कामयाबी की दुआ मांगते हैं कहती हुई बड़ी साहिबा खड़ी हुई और शाही अंदाज से जनानीखाने की तरफ चली गई । अली आदिलशाह ने उठकर हीरो की मूठ वाली एक छूरी देते हुए कहा खान यह आप को हमारी तरफ से तोहफा है हमें उम्मीद है कि आप आदिलशाही के इस कांटे को हमेशा के लिए निकाल फेंकेगे।


सारा दरबार अफजल खाँ की जय जयकारों से गूंज उठा किसी ने उसे शेर कह कर पुकारा तो किसी ने कुछ और । दरबार उठने से पूर्व खुद अली आदिलशाह ने उसे महान बुतशिकन और कुफ्रशिकन कह कर उसे गले लगाया और विदा किया । अगले ही दिन से नगर के बाहर मिलो लंबे-लंबे मैदान में तंबू लगने शुरू हो गए अलग-अलग दिशाओं से सेनाएं आकर इकट्ठा होना शुरू हुई ।


देखते ही देखे थे तंबू और शामियानों का एक नगर खड़ा हो गया । लड़ाई के बिगुल बजने लगे,  सैनिकों की टुकड़ियां लड़ाई का अभ्यास करने लगी । जिधर देखो उधर ही हिनहिनाते घोड़े दौड़ लगाते नजर आते या सूंड उठाकर चिंघाड़ते हाथी ।


आखिर ज्योतिषियों द्वारा बताए गए शुभ दिन यह सेनाओं का काफिला कूच के लिए तैयार हुआ । सब सरदार अपनी अपनी टुकड़ियों के आगे सजे हुए घोड़े पर सवार हो गए । अफजल खाँ का हाथी सबसे आगे चलता था कई दिन से उसके माथे और सूंड पर मेहंदी रचाई जा रही थी । कीमती हौदा तैयार कराया गया था । खान अपने शामियाने से निकल बाहर आया असंख्य सैनिकों को देखकर वह फूल कर कुप्पा हुआ जा रहा था । 


सैनिकों के बीच से निकलता हुआ कोई एक फर्लांग ही चला होगा कि उसके हाथी का महावत घबराया हुआ आया और माथे से पसीना पोंछते हुए बोला सरकार ना जाने कौन बला जादू कर गई आपका प्यारा हाथी फतेह लश्कर खड़ा-खड़ा धड़ाम से जमीन पर जा गिरा और देखते ही देखते दम तोड़ गया है । 


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खान दोनों हाथ आसमान की तरफ किए खड़ा रह गया वह इस अशुभ लक्षण के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था उसने किसी तरह अपने को संभाला आखिर तो वह सेना का सिपहसालार था बाकी सरदार और सिपाही क्या कहेंगे यह सोचकर उसने हुक्म दिया - तो फिर नालायक हमारा मुंह क्या ताक रहे हो जाओ कोई दूसरा हाथी तैयार करो और जल्दी लेकर आओ।


एक बार जोर से नारा लगा- "अल्लाह हू अकबर" दूसरा नारा लगा- कुफ्रशिकन अहमद खान जिंदाबाद।" मानों समुद्र की तूफानी लहरें आगे ही आगे बढ़ चली।


सारा आकाश धूल से आच्छादित हो गया और अगला पड़ाव आते ही धरती खून से लाल होनी शुरू हो गई जिस भी गांव के बाहर डेरा डाले जाते वही खान मृत्यु का नग्न नर्तक कराता।


मंदिरों के कलश उठाकर नदियों में फिकवाये जाने लगे मूर्तियां तोड़ तोड़ कर मस्जिदों की पैड़ियों की नीवों में झोंक दी गई । यह कर्म अनवरत चलता रहा और अफजल खान का काफिला भी आगे ही बढ़ता रहा । धीरे-धीरे पाप का घड़ा भी भरता गया परंतु इस घड़े को पूरी तरह भरने में शायद अभी थोड़ी देर और लगनी थी ठीक उतनी ही देर जितने फूटने में थी ।


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