जंगल में दीपावली (Diwali in the forest)
दीपक वन का राजा दुर्दांत सिंह बड़े ही क्रूर स्वभाव का था वन के जीव जंतुओं में हिंसा और आतंकवाद की दहशत फैली थी बड़े जंतु छोटे जंतुओं को देखते ही खा जाते थे अनुशासन का नाम तक न रह गया था।
तभी चुनाव का समय आ गया सारे वन में चुनाव का बिगुल बज गया था सभी जीव जंतु अपने अधिकार के प्रयोग में लग गए । इस बार जंतुओं ने चुनाव में दुर्दांत सिंह को नकार दिया और शक्ति सिंह को अपना नया राजा चुन लिया । वह बड़ा ही उदार हृदय और अनुशासन प्रिय युवा सम्राट था ।
अपने सिंहासन पर बैठते ही सभी जीव जंतुओं की सभा बुलाकर सबसे निर्भय होकर उसने रहने को कहा । उसने समझाया कि "हमारा उद्देश्य तभी पूरा होगा जब भेड़ और भेड़िया एक ही घाट पर पानी पी सके ।"
दीपावली का त्यौहार आने वाला था । सभी जंतुओं ने दीपक वन में रोशनी करके हंसी-खुशी दीपावली मनाने का निश्चय किया । भालू दादा को दीपक वन की सजावट का काम सौंपा गया । वे नगर के अशोक टेंट हाउस में जाकर दीपक वन को सजाने तथा प्रकाश से जगमगाने का आदेश दे आए।
फलों की व्यवस्था का काम लोमड़ी रानी को सौंपा गया उन्होंने मीठे-मीठे सीताफल, सेब, अनार तथा अन्य फलों की जमकर खरीदारी की ।
मिठाई तथा पकवानों की जिम्मेदारी चीता सिंह को दी गई हुए खुशी से गरजते गुर्राते और छलांग लगाते हुए मोटू हलवाई के पास पहुंचे तथा उसे पूरी दुकान सही वन में बुला लाए ।
गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां बनवाने का काम हाथी दादा को मिला । नगर के एक मूर्तिकार को बुला लाए राम छैनी हथौड़ा लेकर पत्थरों को तराशने तथा मूर्तियां बनाने में लग गए ।
पटाखे, अनार, फुलझड़ियां तथा अन्य आतिशबाजी लाने का काम लकड़बग्घे को दिया गया । उन्होंने अपने परिचित सप्पू दादा को आतिशबाजी की पूरी दुकान सहित वन में आमंत्रित कर लिया ।
इस प्रकार दीपक वन में चहल-पहल हो गई । सारा जंगल मंगलमय हो उठा था । देखते ही देखते दीपावली का दिन आ गया । वन्य जीवों के बच्चे खुशी से फल, मिठाइयां, पटाखे आदि खरीदते फिर रहे थे ।
शाम को मिस्टर राम ने एक ऊंची चट्टान पर लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां सजा दी । सारा दीपक वन प्रकाश से जगमगा रहा था । राजा शक्ति सिंह निश्चित समय पर पहुंचे । सबने फूल मालाएं पहनाकर उनका स्वागत किया । राजा ने सबके साथ मिलकर लक्ष्मी गणेश का पूजन किया । वन्य जंतुओं के बच्चों ने बड़े बुजुर्गों के साथ मिलकर आतिशबाजी का आनंद लिया । दीपावली पर पुराने बेर भूलकर उलूकदेव और चमगादड़ राजा भी उपस्थित हुए । सबने राजा के साथ मिल कर बैठकर पेट भर फल, मिठाई और पकवान खाएं । बाद में सबने मिलकर गीत-संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया । गधे ने गीत गाया, मेंढक दादा ने ढोल बजाया और कोयल रानी ने दीपक राग गुनगुनाया । सारा जंगल प्रकाश से जगमगा उठा । सभी के दिलों में खुशियों के हजार-हजार दीप जल उठे ।
राजा शक्ति सिंह ने सब को एकता के महत्व से परिचित कराते हुए कहा कि एकता, मेलजोल और भाईचारे के कारण हम लोग इतने शानदार ढंग से जंगल में दीपावली मना सके । इससे मनुष्य और पशुओं के बीच का आपसी भय भी कम हुआ । बल्कि यों कहें कि मनुष्यों के साथ भी हम पशुओं की दोस्ती बड़ी । सब लोग इस परंपरा को कायम रखना तथा हिंसा और आतंकवाद को ना पनपने देना । तभी हमारा दीपक वन सभी वनों से श्रेष्ठ कहलाएगा ।
Post Comment
1 comment
Very Nice Post Sir Ji
Post a Comment