कितने ही युग से हे जननी, जग तेरे यश गाता
कितने ही युग से हे जननी, जग तेरे यश गाता।
भगवति भारत माता ।। ध्रु ।।
हिमाच्छन्न तव मुकुट अडिग, गंभीर समाधि लगाए,
तपस्वियों को मन: स्थैर्य का, मर्म सदा सिखलाए।
उदधि कृतार्थ हो रहा तेरे, चरणों को धो-धोकर,
रचा विधाता ने क्योंकर है, स्वर्ग अलौकिक भूपर।
सत्य और शिव भी सुन्दर भी महिमा तुमसे पाता,
भगवति भारत माता ।। 1 ।।
धार हलों की सहकर भी माँ, दिया अन्न और जल है,
निर्मित तेरे ही रजकण से, यह शरीर है बल है।
ज्ञान और विज्ञान तुम्हारे, चरणों में नत सिर है,
जीव सृष्टि की जिसके हित, धारते देह फिर-फिर है।
मुक्ति मार्ग पाने को तेरी, गोदी में जो आता,
भगवति भारत माता ।। 2 ।।
ऋषि मुनि इतनी दृष्टाओं, वीरों की जननी तू,
माता जिनके अतुल त्याग की, आदर्श की धनी तू।
जीवों के हित जीवन को भी, तुच्छ जिन्होंने माना,
निज स्वरूप में भी जानती के, कण-कण को पहिचाना।
जग से लिया नहीं तूने, जग रहा तुम्हीं से पाता,
भगवति भारत माता ।। 3 ।।
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