ऋतु बसंत सुहावनी जी फागुन के दिन चार (बसंत गीत)
ऋतु बसंत सुहावनी जी फागुन के दिन चार,
होली आई देश में जी घर घर मंगलाचार,
लहर फागुन की आयी रसीला होली गावे,
चहु दिश शोर मचाये.....
धरा की ओढ़नी बसंती रंग छायो जी - 2
फूली मंजर आम की जी भवर रहें गुंजार,
रंग बिरंगी तितलियाँ जो बैठी पंख पसार,
साप ने बदली चोली, डाल पे कोयल बोली,
देखो आ गई होली ।
धरा की ओढ़नी बसंती रंग छायो जी - 2
फूली सरसों खेत में जी, झुकी चना की डाल,
देख चना को चौधरीमन, खुशियाँ उठी अपार,
चना और डागी लायो, पुजावा होली गावे
चहु दिश शोर मचाये.....
धरा की ओढ़नी बसंती रंग छायो जी - 2
मारा पापी कंस को जी ले ग्वालों के साथ,
होली खेली प्रेम से जी चहलाये ब्रजनाथ,
साथ पाण्डव को दीनो, द्रोपदी दु:ख हर लीनों नाश, कौख को कीन्हो.....
धरा की ओढ़नी बसंती रंग छायो जी - 2
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